शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

अनूदित साहित्य


मित्रो, ‘सेतु साहित्य’ के नवम्बर 2011 अंक के लिए जिस पंजाबी कविता का मैंने चयन किया है, वह सुश्री तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग ‘आरसी’ के 14 जुलाई 2010 के अंक में प्रकाशित हुई थी और मैंने तभी निश्चय कर लिया था कि इसे मैं हिंदी में अनुवाद करके अपने ब्लॉग ‘सेतु साहित्य’ के माध्यम से हिंदी के विशाल कविता प्रेमी पाठकों को उपलब्ध कराऊँगा। लेकिन अफ़सोस कि बहुत खोजबीन करने के बाद भी न तो तनदीप तमन्ना जी की ओर से और न ही अपने पंजाबी लेखक/कवि मित्रों की ओर से इस कविता के रचनाकार की कोई जानकारी मुझे मिल पाई है। मुझे तो यह भी नहीं मालूम हो सका कि यह कविता किसी कवि की है अथवा कवयित्री की… मैं जब जब इसे पढ़ता हूँ, यह अपनी गिरफ़्त में मुझे इस तरह ले लेती है कि फिर उससे बाहर निकलना मेरे लिए बहुत कठिन हो जाता है। खैर, मेरे सब्र का प्याला अब भर चुका है और मैं अपने आप को इस कविता को आपसे साझा करने से नहीं रोक पा रहा हूँ। आप भी पढ़ें और अपनी राय दें कि क्या यह आपको भी उतना ही स्पंदित करती है, जितना मुझे इसने किया है। आपकी राय की प्रतीक्षा में…
-सुभाष नीरव




पंजाबी कविता

मैं कैसे आऊँगा
कंवलजीत ढुडीके
हिन्दी रूपान्तर : सुभाष नीरव






विदा होते समय
दोस्त ताकीद करते हैं
अगली बार आना तो
लेकर आना
मौसम की सुगन्ध का एक टुकड़ा
लिपे घर की खुशबू
हलों के गीत
घी के तड़के की महक
घरती के कण
बेबे (माँ) की लम्बी टेर के गीत
कच्चे कोठों की तस्वीरें
घर के मक्खन की महक
मथानी की लय के संग-संग
पाठ करती बेबे की याद
बाहर वाले घर में से आती
गोबर की गंध
कूड़े के ढेरों पर उगी
घास की स्मृति…

मन में सोचता हूँ
अगली बार आया
तो कैसे आऊँगा…
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7 टिप्‍पणियां:

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

लिपे घर की खुशबू
हलों के गीत
घी के तड़के की महक
घरती के कण
बेबे (माँ) की लम्बी टेर के गीत
कच्चे कोठों की तस्वीरें
घर के मक्खन की महक
मथानी की लय के संग-संग
पाठ करती बेबे की याद

वाह--वाह सुभाष जी आपने तो आज पिंड (गाँव ) की याद दिला दी
इतनी दूर बैठे भी आज बचपन में जाकर कुछ दिन बिताये याद आ गए ....
बहुत अच्छी कविता कंवलजीत जी को बहुत बहुत बधाई ....
आभार .....

ashok andrey ने कहा…

gaon ki mahak tatha taji hava ke jhonko ko vistaar deti kanval jeet
ki yeh kavita barbas hee apni aur khiinch leti hai,sundar abhivaykti ke liye badhai.

sanjiv salil ने कहा…

नीरव जी!
आपके चिट्ठे पर अन तजा हवा के झोकें से गुजरने की तरह है. अनूदित कविताओं के साथ मूल रचना देवनागरी लिपि में दे सकें तो मजा बढ़ जायेगा.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

सुधाकल्प ने कहा…

गाँव के सरल जीवन की छवि अंकित करती हुई भाव पूर्ण अभिव्यक्ति से भरी कविता !बधाई |

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन गांव की भीनी खुशबू बिखेरती रचना-उत्तम अनुवाद!!

सहज साहित्य ने कहा…

मैं कैसे आऊँगा-गहरी संवेदना में पगी कविता , जो दिल को केवल छूती ही नहीं बल्कि मथ देती है। कवि के साथ नीरव जी भी बधाई के पात्र हैं जो मूल जैसा भाव अनुवाद में उतारने की कलात्मकता और महारत रखते हैं/

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

man mein gahre utarti hai ye rachna. gaav ke saath hin bachpan ki smritiyan...bahut sundar rachna. uttam anuwaad...badhai.